Welcome to the BLISSFUL journey

पार्वती जी के अनुभव

0

श्रीमति पार्वती जी, पूज्यश्री आत्मानंदमयी माताजी के प्रथम क्रिया योगी शिष्यों में से एक प्रमुख शिष्य हैं। पार्वती जी को १८ जनवरी २००५ में माताजी से दीक्षा मिली।
१० साल  से एक महान गुरु  की खोज और अज्ञात से इस सच्चाई को न जान सके कि महावतार बाबाजी, श्री लाहिरी महाशय जी, परम गुरु भोगनाथ सिद्दार जी जैसे महान गुरु माताजी के सेशंस  में भाग लेते हैं। इस सच्चाई का ज्ञान होने तक उन्हें कयी तरह के विचित्र अनुभवों का समना करना पड़ा।
एक बार वह पूर्णिमा ध्यान सत्र के लिए माताजी के साथ यात्रा कर रही थीं और एक महीने से  पार्वती जी ध्यान का अभ्यास कर रही थीं , पर इसमें वे केवल अलग-अलग रंगों की दृष्टि का अनुभव कर सकी, लेकिन उनको  ऐसा कोई दृष्टि नहीं दिखाई दिया, जिसे याद रखना लायक था। पेद्दमड़ी जाते समय बीच में एक छोटा सा गाँव मट्टलापालें था। पार्वतीजी उस स्थान पर स्पष्ट रूप से देवी माता का अनुभव कर सकी। जब उन्होंने माताजी को यह बताया ,माताजी ने कहा कि हाँ देवी महालक्ष्मी माता वहां विराजमान हैं। बाद में पार्वती जी इस सत्य को समझ सकी कि उस गाँव में कई देवी-देवता माताजी के दर्शन करने वहां पर आए।  पेद्दमड़ी तक पहुँचने के बाद उन्होंने तरह तरह के मीठी खुशबूएँ, दिव्य तुलसी की खुशबू का अनुभव किया, इनका अनुभव करते हुए उन्होंने माताजी से पूछा कि यह सब अद्भुत सुगंध क्या हैं..तब माताजी ने कहा कि ये गुरुओं की सुगंध हैं जिन्होंने हम सबके आने से पहले यहाँ अपनी उपस्थिति दिये।  पार्वती जी को  गुरु, दिव्य देवी-देवताओं के दर्शन हुए, उनको  भगवान शिव के भी दर्शन हुए थे।  इन अतिप्रवाहित अनुभवों के स्थिति में होते उन्होंने माताजी से एक अनोखी इच्छा पूछे कि माताजी क्या आप मुझे  एक महान दिव्य गुरु से दीक्षा दिला सकती हैं जो भौतिक रूप में इस धरती पर नहीं हैं। जब लंबे समय के अवधि के बाद पार्वती जी को माताजी ने ध्यान अभ्यास केलिए बुलाया था। उन्होंने माताजी से एक अजीब ख्वाहिश पूछी कि, महावतार बाबाजी जी ने लाहिरी महाशय जी को किस तरह से दीक्षा दीये , उसी तरह से माताजी  मैं चाहती हूँ कि  आप मुझे  लाहिरी महाशय जी से दीक्षा दिलवाऐं। माताजी परिणाम को जानते हुए भी उनके प्रिय शिष्य की इच्छा पूरी करने के लिए उनकी ख्वाहिश पूरी करे और इस तरह ध्यान में पार्वती जी को श्री लाहिरी महाशय जी के दर्शन हुए, जिसमें उन्होंने पार्वती जी को कई फलदायी तरीकों से आशीर्वाद दिये। इसके बाद जैसे ही उन्होंने पार्वतीजी के सिर के क्षेत्र का स्पर्श किया, उन्हें लगा जैसे कि एक हज़ार वोल्ट के तार ने उन्हें छुआ है।  विद्युत धारा का बहना और उसके साथ वह कई बार पूरी तरह से हिल गई थी, जिसे लाहिरी महासया जी की विद्युत् ऊर्जा ने उन्हें घुमाकर हिलाकर रख दिया था। वह इसे सहन नहीं कर सकी और गिर गईं और जब उन्हे होश आया वे कई बार वही अनुभव करते गयीं।  इस सब के कारण उन्हें बहुत दुख का अनुभव हुआ और उसके साथ ही साथ एक बड़ी उल्टी होगयी। उन्होंने अपनी चाची की मदद से थोड़ा आराम किया जो उनके साथ आई थी। जबरदस्त एनर्जी वह सहन नहीं कर सकी और कुछ ही समय में उनको  एक और सुंदर दृश्य दिखाई दिया। उनके माथे पर तीसरी आंख का क्षेत्र खुल गया और उन्हें देवी, देवताओं के लगातार सुंदर अनुभव होने लगे, घर पहुंचने के बाद भी उनका यह अनुभव बंद नहीं हुआ। वह अपने पैरों को फैलाकर सो नहीं पा रही थी क्योंकि देवता उनके चारों ओर दिखाई दे रहे थे इसलिए वे कैसे अपने पैरों को  फैला सकती थी।  जब पार्वतीजी उनके रिश्तेदारों से  उन दृष्यों के  संबंध में बात करती थी तो वे उन्हें पागल कि तरह देखते थे । नमक के पानी से भरे घड़ा से स्नान करने से उन्हें थोड़ी राहत मिलती थी। यह सब नहीं सहन करने के कारण वे अपनी सखी भारती जी की अनुमति से माताजी से मिलने गये और माताजी के पैरों को पकड़कर नहीं छोड़े तब तक कि माताजी  ठीक है करके बोले।बड़ी निराशा के साथ माताजी से कहा कि मेरे तीसरे नेत्र क्षेत्र में अम्मा कृपया इन दर्शनों को रोक दीजिए और मुझे मेरी सामान्य अवस्था को मुझे वापस लाएं, जिससे माताजी ने उन्हें वापस उनकी सामान्य अवस्था में ला दिये। उस समय से पार्वती जी का एक ही संकल्प था कि ध्यान का अभ्यास करने के साथ  प्रत्येक कोने में सुषुम्ना क्रिया योग का प्रसार करना उनका एकमात्र लक्ष्य बन गया। कई सुषुम्ना क्रिया योगि  परेशान होते हैं कि उन्हें अच्छे ध्यान का अभ्यास करने के बाद भी कोई अनुभव नहीं दिखाई देते हैं। लेकिन गुरु उनकी महान कृपा से उन्हें देखते हैं कि उनके शिष्यों को उनके सामन्य जीवन में बिना परेशानी के उनके सूक्ष्म शरीर पर नाजुक स्पर्श से  हर पल वे अपने शिष्यों को अपने बच्चों कि तरह देखभाल करते ,एक उच्चतम अवस्था में ले जाते हैं।जो हमें इन अनुभवों से जान पाते हैं।  माताजी अपने शिष्यों कि खुशी केलिए कैसे वह महान गुरुओं द्वारा दीक्षा प्राप्त कराईं हैं और जब शिष्य इसे सहन करने में असमर्थ होते हैं तो उन्हें एक सामान्य अवस्था में लाने में मदद कैसे  करें ।एक महान गुरु की कृपा और मार्गदर्शक श्री श्री श्री आत्मानंदमयी माताजी को प्रत्येक सुषुम्ना क्रिया योगी उनके पवित्र चरणों में सुमांजलि अर्पित करें।

Share.

Comments are closed.