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शांति कांचर्ला के अनुभव

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सुषुम्ना क्रिया योगियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण आत्म समर्पण,ध्यान और विचारणा है। ज्यादातर लोग जो सामान्य रूप से ध्यान की महिमा के बारे में जानते हैं, वे विचारणा या आत्म-समर्पण की परवाह नहीं करते हैं। लेकिन ये सभी सुषुम्ना क्रिया योगियों के लिए प्रामुख्य रूप से उदाहरण है जो इन तीनों का महत्व समझ सके और जान सके । इन तीनों के बारे में समझने वालों में से , यूके की शांती उनमें से एक है। जब से वे इस ध्यान का अभ्यास करना शुरू करे, तब से वे हमेशा आत्म समर्पण और समय-समय पर विचारणा भी करतीं रही है।जब उनकी शादी हो गई, तो वे अपने पति के साथ यू के चले आए, उनके पति नौकरी केलिए स्पेन में रहते थे,वीजा कि समस्याओं के कारण उनको यू के में ही रहना पडा। तब वे गर्भवती थी। अपनी पहली गर्भावस्था और अकेलेपन में उन्हें खुद का ख्याल कैसे रखना है और क्या खाना है वो सब वो नहीं जानती थी, उनको गैस्ट्रिक कि समस्या उनको कुछ हज़म नहीं होना। जब वे चेकअप के लिए डॉक्टर के पास गई, तो गाइनकालजिस्ट ने उन्हें बताया कि उन्हें फाइब्रॉएड है और वह फाइब्रॉएड उनके बच्चे से बड़ा है। डॉक्टरों ने उनसे अच्छा आहार लेने के लिए भी कहा था,जिसके कारण वह अधिक चिंतित हो गई थी। कारण यह था कि तब तक वह कभी भी नहीं जानती थी कि फाइब्रॉएड क्या होता है। वो सामान्य आहार नहीं ले पाती थी और सिर्फ थोडा दूध पी सकती थी, जब वह अपनी दूसरी जाँच के लिए गई तो डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि फाइब्रॉएड का आकार उस बच्चे से बड़ा होगया है,और उन्होंने कहा कि वे गारंटी नहीं दे सकते कि बच्चा ठीक से पैदा होगा कि नहीं, इस वजह से शांती बहुत डर गईं। केवल ओमकार, और ध्यान उनके लिए साथी थे लेकिन वह एक सुषुम्ना क्रिया योगिनी हैं और उन्होंने माताजी पर पूरे समर्पण के साथ यह साझा करलिया कि माताजी ही उनकि देखे रेख करेंगे। यह कहते , उन्होंने तीनों भावनाओं पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया था, ध्यान, विचारणा और पूर्ण आत्म-समर्पण । एक महीने में उनकी वीजा समस्या का हल हो गया।
तीसरे चेकअप में डॉक्टरों ने आश्चर्य से उनसे बताया कि बच्चा बहुत स्वास्थ्य है और गैस्ट्रिक समस्याएं भी कम हो रही है। डिलीवरी भी शांती के लिए बहुत आसान से हो गया और उसने एक स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया। मेरे लिए सब कुछ माताजी और गुरू ही हैं कहती हैं शांती। जब उनके पति को एक अलग शहर में सप्ताह में पाँच दिन काम करना पड़ता था, शांती अपनी बेटी के साथ अकेले यू के में रहती थीं। अकेलेपन ने उन्हें डरा दिया, जिससे ध्यान उनके लिए एक साथी बन गया। एक दिन आधी रात को श्री महावतार बाबाजी ने उन्हें दर्शन दिए .. उन्हें देखते वो गहरी नींद में फिसल गयी। जब उसने माताजी से इस घटना के बारे में पूछा, तो माताजी ने कहा कि आप डरी हुई थी है न….इसलिए बाबाजी ने अपनी उपस्थिति आपको महसूस कराये। माताजी की ये बातें सुनकर शांती बहुत खुश हुईं और उनका मन आनंद से भर गया। शांती का जन्मदिन दुर्गाष्टमी के दिन हुआ था। उन्होंने बड़ी भक्ति,भाव और आत्म समर्पण के साथ नवरात्रि पर पूजा की, देवी पार्वती और भगवान शिव के चरणों में प्रणाम करके उन्होंने कहा, मेरे जन्मदिन पर मुझे आशीर्वाद दीजिए परम शिवा….! जैसे ही वें आशीर्वाद माँगी उन्हें भगवान शिव और देवी पार्वती मा दोनों उनके बडे सुवर्ण चरणों के साथ स्वर्णिम प्रकाश में उन्हें दर्शन दिये । जिसने उन्हें रोमांचित और अत्यंत प्रसन्न कर दिया। आप भगवान शिव के आशीर्वाद के प्राप्ति थी जब माताजी ने शांती को इस बात से अवगत कराया, उनकी खुशी का कोई मोल नहीं था। छह साल तक वह नौकरी की तलाश में थीं, लेकिन वे सोचने लगी कि शायद उन्हें नौकरी नहीं मिलेगी, लेकिन उनको नौकरी कि आवश्यकता थी और वो सोच रही थी कि उसे वो कैसे प्राप्त करें ? इस चिंता के साथ जब वह ध्यान कर रहीं थी कि उन्हें एक गुफा में एक महान योगी के दर्शन मिला, जिन्होंने उनको एक अच्छी नौकरी का आशीर्वाद दिया था। जल्द ही उनको एक अच्छी नौकरी मिली।माताजी ने शांति से कहा कि वो योगी भोगनाथ महर्षि जी थे।तो शांति गुरुओं कि ओर एक बार फिर से संपूर्ण शरणार्थी से आनंद आभास करती हैं।
आत्म समर्पण, ध्यान और विचारणा ने उनको कई अद्भुत अनुभव दिए हैं।

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