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श्रीदेवी देविरेड्डी के अनुभव

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“मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ है? मैं ही क्यों? “- यह ऐसे प्रश्न है जो किसी के भी मन में आते हैं जिनका मन दुख से भरा होता है…. कई शास्त्र (धार्मिक / आध्यात्मिक ग्रंथ) इसे कर्म संतुलन के रूप में समझाते हैं … कभी-कभी यह समझाया जाता है कि गुरुओं की कृपा से,इन छोटे दुखों के कारणों से, शायद एक बडे हादसे से कोई बचा जा रहा है। श्रीदेवी कहती हैं कि ” मैं सुषुम्ना क्रिया योग के माध्यम से इसे समझने और अनुभव करने में सक्षम थी”। श्रीदेवी हैदराबाद में कुकटपल्ली में निवास करती है, उसके दो बच्चे हैं जिसमें एक बच्चा “ऑटिज्म” से पीड़ित है… .. ”केवल मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ ? ”- ये दुख, काम का दबाव,खर्च के कारण वित्तीय तनाव उसे परेशान करता रहा। उस चिंता के स्थिति में, २०१४ में डॉ मधुश्री जी द्वारा उसने सुषुम्ना क्रिया योग में दीक्षा लिया। ध्यान शुरू करने के कुछ ही समय में और माताजी के द्वारा प्रायोजित क्लासेस् में भाग लेने से,उसे स्पष्ट होगया कि क्यों वो इन सारे दर्दों का अनुभव कर रही है। हमारे कर्मों को संतुलन करने केलिए ऐसे विशेष बच्चे पैदा होते हैं।यथा उन्हें प्यार से सेवा करनी चाहिए। जब यह श्रीदेवी को आभास हुआ तब उसे खुद के जीवन कि इस स्थिति के बारे में स्पष्ट हुआ।उसने अपने मन को शांत करा और बिना कोई झुंझुलाहट या गुस्से के अपने कार्य को लगन और रीतिबद्ध से किया। वो ध्यान निरंतर करने लगी,आश्चर्य कि बात है कि, उसके पति जो कई बार कोशिश करने के बावजूद उनको हेच १ वीज़ा पाने में असफल रहे, उनको वीज़ा मिला और वे यू एस चले गये…।

समय में ध्यान सत्रों में भाग लेना, पूर्णिमा ध्यान सत्रों में भाग लेने केलिए उसने बेटी को उसके माँ की देखभाल में छोड़कर, जब भी संभव हो, दूसरों को ध्यान सिखाते हुए, ऊर्जा के साथ अपने कार्यों को नए सिरे से उत्साह के साथ करना – श्रीदेवी ने सुषुम्ना क्रिया योग कि इस यात्रा को ज़ारी रखते ये सभी परिवर्तन उसने खुद में महसूस किया।
प्रतिदिन केवल ४९ मिनट की सुषुम्ना क्रिया योग ध्यान, श्रीदेवी के जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया है…। नवीनीकृत स्वास्थ्य, विचार प्रक्रिया में सुधार, ऊर्जा, कर्म सिद्धांत हमारे जीवन पर कैसे काम करता है – इन सभी को श्रीदेवी ने अनुभव किया और हमारे साथ साझा किया। जब भी वह गुरु के चित्र के सामने प्रार्थना करती है। श्रीदेवी स्वयं को गुरु के चरणों में एक छोटा कण की कल्पना के रूप में देखती है – और यह वो पूर्ण समर्पण के भाव और स्थिर मन के साथ करती है!

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