यशस्विनी अनुभव

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यशस्विनी जी एक युवती साधक हैं जो मुंबई में रहती थी और अब वे आस्ट्रेलिया में रहती हैं।वे छोटी उम्र से ही उनके
माताश्री के साथ सुषुम्ना क्रिया योग कि साधना करती थी।२०१२ के गुरुपूर्णिमा से पहले यशस्विनी जी को एक दिन उनके
कान में तीव्र दर्द होने लगा।वे कई डाँक्टरों  और ई.एन.टी स्पेशलिस्ट  को भी परामर्श किये लेकिन उन्हें कोई सुझाव नहीं
मिला।जैसे गुरुपूर्णिमा का उत्सव नज़दीक आ रहा था ,उनका दर्द बढ़ता गया।उस साल गुरुपूर्णिमा का
उत्सव श्रिंगेरी में आयोजित किया गया,जहाँ पर निरंतर बारिश और तापमान भी बहुत कम होता है।यश्स्विनी जी को
अंदाज हुआ कि अगर उस मौसम में वो गुरुपूर्णिमा महोत्सव में जाएंगी तो उनका तबियत बिगड़ जाएगा।अथार्त फिर भी
वो खुद को रोक नहीं पायी क्योंकि गुरुपूजा ,साल में एक ही बार मनाया जाता है जहाँ पर हम शिष्यों को पूज्यश्री
आत्मानंदमयी   माताजी के चरण सपर्श करके, आशीर्वाद लेने का बहुमूल्य अवसर मिलता है।गुरुपूर्णिमा हर एक साधक
केलिए एक बहुत शुभ अवसर है।एक क्षण पर यश्स्विनी जी ध्यान में गुरु माता जी को प्रार्थना कर रही थी।उन्होंने उनकि
कान में दर्द और हेल्थ के बारे में माता जी को ध्यान में बताया और निवेदन किया।आश्चर्य से ,उनको दर्द कम होने का
एहसास होने लगा,और दर्द से पूरा छुटकारा मिल गया और गुरू पूजा महोत्सव में  बिना कोई रुकावट के वो शामिल हो
पायी।
गुरु माता जी का आशीर्वाद उन्होंने गुरु पूजा में पाकर, वे मुंबई वापस चली गयी।मुंबई में वापस जाने पर उनके कान का
दर्द फिर से शुरू हो गया।परन्तु इस बार डाँक्टरों ने कान के दर्द कि वजह को पहचाने और इसे कोलेस्टिटोमा करके उन्हें
बताया। कोलेस्टिटोमा ,कान में ऐसा क्लेश है,जो कान के अंदर मध्यभाग पर प्रभावित होता है। ये ईअर ड्र्ं यानि कान के
पर्दे, के पीछे एक छोटी सि ट्यूमर के जैसे होता है।वो पैदाइशी दोष हो सकता है ,या वो कान के बीच भाग में हर
समय संक्रमण होने के कारण भी हो सकता है।कोलेस्टिटोमा अगर चिकित्सा नहीं करवाया जाए तो वो गंभीर स्थिति में बदल सकता है,और कभी -कभी कान कि हड्डी का क्षरण भी हो सकता है।अगर हड्डी का क्षरण होता तो
संक्रमण कान के भीतरी भाग तक फैल कर,मस्तिष्क तक पहुंचता है, तब वो मृत मस्तिष्क, मेनिन्जाइटिस, और अगर
चिकित्सा नहीं करवाये तो जान लेवा भी हो सकता है।जब तक डाँक्टरों ने कोलेस्टिटोमा का डैगनौस किया, तब संक्रमण
कान के भीतरी भाग तक फैलकर वहीं पर रुक गया,परंतु वो मस्तिष्क के अंदर नही फैला। यह खुशकिस्मती कि बात है
उसे डॉक्टरों ने  सर्जरी कराने का सलाह दिया।पूज्यश्री आत्मानंदमयी माताजी के आशीर्वाद से यश्स्विनी जी ने सर्जरी
करवायीं और पोस्ट सर्जरी  जल्दी ठीक होने लगी।उन्होंने कहा कि एनेस्थीसिया से बाहर आने पर भी ,आँपरेशन के बाद
भी उनको थोडा दर्द भी महसूस नहीं हुआ। बिना कोई दर्द कि दवा के, वे बहुत आराम थी बिना कोई दर्द का मस्हसूस हुए।
हमें याद है, यश्स्विनी जी के कान में वे कयी सालों से दर्द अनुभव किये, बद्किस्मती से उनके डॉक्टर उसकि अंदाज
नहीं करपाए और आश्चर्य कि बात है कि वे गांव या टाउन में नहीं बल्कि एक मेट्रोपोलिटन शहर और हेल्थ हब मुंबई में
रहतीं थी । फिर भी डॉक्टर अंदाज़ नहीं लगा पाए, जब तक यश्स्विनी जी ने उनकि समस्या के बारे में पूज्यश्री
आत्मानंदमयी माताजी को बतायी ।उसके बाद जब वे वापस मुंबई लौटी तब उनको इलाज का परिणाम मिला ।
कोलेस्टिटोमा तब प्रकट हुआ, जब उनका इंफेक्शन कान के अंदरूनी हिस्से तक फैलने के बाद, मस्तिष्क के अंदर फैलने ही
वाला था ।यश्स्विनी जी कैसे चमत्कारी से ठीक हुईं? उनका मानना है कि यह सब सिर्फ़ हमारी गुरु माता श्री
आत्मानंदमयी माताजी के दिव्य अनुग्रह और आशीर्वाद से ही हुआ है।पूज्य श्री आत्मानंदमयी माताजी के दिव्य चरणों पर
मेरा हृदय पूर्व नमस्कार अर्पित करती हूँ जो हमेशा अपने शिष्यों के प्रति चमत्कार, निरंतर प्रेम,अनुग्रह,चिंता ,स्नेह के भाव
वर्षित करती हैं।

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