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Day 19 – गुरू वाक्य, वेद समान

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पूर्व जन्मों के पुन्यों के कारण हमे मानव जन्म मिला। इस शरीर को वज्र शरीर कि तरह बनाने के लिए हमे प्रत्यक्ष गुरू की आवश्यकता है। परम गुरुओं कि आशिर्वाद के कारण इस आधुनिक युग में सुषुम्ना क्रिया योग का महा विद्या माताजी के अनुग्रह से प्रसादित हुआ। “नाग तेजा के यह दिव्य अनुभव का कारण, उनका निःस्वार्थ व्यक्तिगत है” – ऐसे माताजी ने, हम सब से कहा। तेजा के कोई और पेड के पास होने पर भी, माताजी के आदेश के अनुसार, निस्वार्थ भाव से  प्रक्रिया करने कि वजह से उनको यह अनुभव हुआ।ध्यान,और गुरुवों कि अनुग्रह के लायक बने।  जब तक साधक “मेरी उन्नति पर लीन हों – यानि स्वार्थ भाव में रहते हों, तब तक उन्हें जो आशिर्वाद के फल मिलने चाहिए ,वो मिलते नहीं हैं। माताजी ने कहा – “जब अपनी आकांक्षाओं और स्वार्थों से मुक्त होकर हम अपने में प्रस्तुत उच्चतम देवात्मा कि अनुभूति करते हैं,तभी हम इस अनुग्रह के सुपत्र होते हैं”।ये बात साफ दिखाई दी कि,माताजी ने इसीलिए तेजा को किसी दूसरी व्यक्ति के पेड के पास खडा होने को कहा। गुरु जब हमसे कोई प्रक्रिया करवाते हैं, उसमे परमार्थ और भावार्थ बहुत होते हैं।नाग तेजा नै जिस पेड पर प्रक्रिया किये उस पेड का कांड दो भागों में है। प्रक्रिया प्रारंभ होने से पहले जब माताजी ने उस महावृक्ष के पास जाकर उनके दोनों शिष्यों ( जिन्हें एक ही पेड मिला) के कर्म लेने को पूछे, तब वो वृक्ष देवता ने दोनो के कर्म को स्वीकार किया ।इस विशय को माताजी ने स्वयं ही हमें कहा। इस तरह के प्रक्रिय हमसे करवाने के लिए गुरुवों को,और हमारे प्रत्यक्ष गुरू माता आत्मानंदमयी जी को विनम्रतापूर्ण प्रणाम।
‘ अनेक जन्म संमप्राप्त कर्म बंधः विदाहिने
आत्म ज्ञाना प्रदानैयना तस्मै श्री गुरूवे नमः। ‘

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