हमारे बचपन के संसकार के कारण,हममें से कयी को भक्ति के मार्ग पर चलने की ,प्रार्थना करना, अष्टोत्र (भगवान के १०८ नामों) का पाठ करना, स्तोत्रों का जाप करना, जप करना, पूजा करना, मंदिर की परिक्रमा करने की आदत होती है।इन आदतों कि वजह से हममें यह प्रश्न उठता है कि, क्यों मैं मेरे भगवान कि पूजा नहीं कर पा रहा हूँ। क्यों मैं देवी माँ का स्मरण नहीं कर रहा जिनको मैं पूजता था?इन सब के बीच ‘शरणागत’ भाव होने के बजाय, हममे से कयी घबराहट,डर ,जिससे तीव्र चिंतन का अनुभव करते हैं, हम में से कई लोग इस अनुभव से गुजरते हैं …. तो इस समस्या का समाधान क्या है?
जब मुरली वेपाडा जी ने यह प्रश्न पूज्य श्री आत्मानंदमयी माताजी से किया, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, ” ४९ दिनों तक सुषुम्ना क्रिया योग का अभ्यास करिए और आप इस उपाय को समझ जाएंगे” इस प्रकार, उन्होंने मुरली जी को आशीर्वाद दिया।” जब माताजी ने बंबई का दौरा किया, तो मुरली जी को माताजी ने इस ध्यान उपदेश में दीक्षा दीए। बॉम्बे में सबसे बड़ी समस्या यह थी कि हर ११ महीने में वे जिस घर में रहते हैं, उस घर को खाली करना चाहिए और नए घर की तलाश करनी चाहिए … जब वह माताजी से इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए कहते हैं, तो माताजी उन्हें “ध्यान का अभ्यास ” करने को बताती हैं। यह क्या है? जब भी मैं अपनी समस्या का हल पूछता हूं, तो माताजी हमेशा “ध्यान पहले” क्यों कहती हैं! मुरली जी ने तब तक केवल माताजी को एक महान ध्यानी के रूप में सोचा था, पूर्ण विश्वास और एक गुरु के प्रति समर्पण की भावना अभी भी उन्में पैदा नहीं हुआ। जब उन्होंने ध्यान करना शुरू किया, तो उनको दुर्गंध का अनुभव होने लगा, वह इस वजह से परेशान हो गये और उन्होंने खुद से कहा – यह क्या है? मैंने ध्यान करते समय सुगंधों के बारे में सुना, लेकिन यह कुछ असाधारण है उनकी पत्नी ने उन्हें ध्यान करना बंद करने का सुझाव दिया। माताजी ने कहा – कि उनके पिछले जन्म में उनको बहुत गुस्सा था – जिसे गुरुओं ने निकाल दिया – माताजी ने उन्हें आशीर्वाद देते सलाह दिये कि वे अपने घर के बाहर ध्यान करें। मुरली जी का यह पहला अनुभव को वे कभी नहीं भूले।
४९ दिनों का ध्यान पूरा करने के बाद, श्रृंगेरी में गुरुपूजा यज्ञ के बाद, बस में गणपावरं विजयाजी के अनुभवों को सुनकर उन्हें लगा कि उनके शरीर में एक ऊर्जा प्रवाहित हो रही है जिसके साथ उन्हें एक बड़ी उल्टी हुई। उडिपी में, जब माताजी भगवान कृष्ण की जगह पर उपस्थिति दिखाई दीए, तो माताजी की आँखों में देखते हुए मुरलीजी बहुत रोने लगे। लेकिन जब तक प्रशांति अम्मा ने उन्हें नहीं बताया, तब तक मुरलीजी को नहीं पता चला कि उन्हें एक अद्भुत आशीर्वाद मिला है जो उनके लिए अज्ञात था। प्रकाश के दो किरणें (जैसे लेजर बीम) पूज्य श्री आत्मानंदमयी माताजी की आँखों से मुरली जी की आँखों में श्रीकृष्ण के मंदिर में गुज़री… और यह कि इसके बारे में कोई नहीं जानता।
उडिपी से धर्मस्थल के रास्ते में, वह दुखी महसूस कर रहे थे कि यद्यपि वे ध्यान में होने से भी, उन्होंने पूरी तरह से माताजी के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया। तब विजया जी उनके बगल में बैठीं और उन्हें संदेश दिया कि गुरु द्वारा भेजे गए संदेश को मुरली जी ने सही तरीक़े से स्वीकार किया है। मुरली जी, जो गुरुपूजा से आने के बाद से गंभीर रूप से शरीर पर झुलस अनुभव कर रहे थे , उन्हें पता चला कि उनमें कोई बीमारी नहीं है। जब उन्होंने माताजी से पूछताछ की, तो उनको संदेश सुनाई दिया “गुरु ने आपके तीन जन्मों के कर्मों को निष्प्रभावी कर दिये” जैसे ही उन्होंने इस संदेश को पूरे समर्पण के साथ सुना, उनको इस आशीर्वाद देने के लिए परम गुरुओं का उन्होंने अपना धन्यवाद व्यतीत किया। बंबई आने पर, उनकी कंपनी द्वारा दिया गया घर से मुरली जी को हल निकल गया और इस तरह माताजी के साथ साझा की गई पहली समस्या का समाधान उनको मिल गया। उन्होंने माताजी का संदेश , कि प्रत्येक सुषुम्ना क्रिया योगी को दस से अधिक लोगों को ध्यान सिखाना है, इस कारण मुरली जी ने माताजी की कृपा से अपने घर में ध्यान सिखाने की सेवा शुरू करे। मुरली जी गुरुपूर्णिमा से “यज्ञ ईंट” लानेपर वे महसूस किये कि कितने चमत्कार और कितना ऊर्जा प्रवाह हो रहा है.. इससे पहले, जब कोई भी समस्या आती थी तब वह हमेशा अपने पक्ष में हल करना चाहते थे। अब वे इतने महान स्थिति में पहुंच सके कि – जो कुछ भी होता है वो हमारे अच्छे के लिए होता है और जो कुछ गुरु देते हैं वह “प्रसाद” जैसे स्वीकृत करना चाहिए। १७०० लोगों के स्कूल में उन्होंने ध्यान सिखाया , सभी को सुषुम्ना क्रिया योग ध्यान देना, सबसे अच्छी गुरु दक्षिणा है जिसे हम अपने माताजी को दे सकते हैं। मुरली जी के अनुभव हर एक सुषुम्ना क्रिया योगियों केलिए उदाहरण है।
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