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Day 18 – गुरू ही मेरे दैव

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नाग तेजा माताजी से सुषुम्ना क्रिया योग दीक्षा पाकर कयी सालों से ध्यान साधना कर रहे हैं। उनके ध्यान साधन में, यह पहला गहरा अनुभव था। वे सबसे बोलने लगे कि,” इस संसार में हमारे कर्मों को रक्त संबंधी भी स्वीकार नहीं करते हैं। वैसे में यह वृक्ष देवता कितने करूणामयी हैं? मुझे पता चले बगैर ही मेरे बहुत से कर्मोँ का क्षयण हो गये।“ उनका यह अनुभव सुनकर हम को ज्ञानान्वित हुआ कि, हम सभी ने माताजी के बताया हुआ प्रक्रिया किये  थे, शायद हमारे भाव भी ऐसे होनी चाहिए, यह  बात हमें  समझ में आयी। इस बात पर हर साधक को पुनःशरण करनी चाहिए कि ‘गुरू दैव के प्रतिरुप हैं’।

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